कुछ वर्ष पुरानी है यह बात...
आग लगी एक गाँव में एक रात..
सैकारों मकान जल गए थे
हजारों लोग परलोक चल गए थे
जो बचे उनके लिए जीवन था व्यर्थ ..
क्योंकि अपाहिज,अपंग,और थे अब असमर्थ..
सरकार ने ऐलान की मुआवजा हर दुखी के लिए
मिला किसे है "उन्हें" न आया था जिनके लिए
मुआवजे की मार से कई भूखे मर गए
जो बचे थे वो मुआवजे से डर गए.
आज वर्षों बाद भी मुआवजा हमें नहीं मिल पाया
न जाने किन लोगों ने खा पी उसे पचाया ..
कुछ गरीब वकीलों ने चलाया एक मुकदमा
एक तारीख न मिल पाया होगये अट्ठारह साल दो महीना...
उठाया सत्ता विरोधी ने जब सवाल
सारी विधानसभा में मचा एक बवाल..
कुछ दिन शोर हुआ फिर भूल गए सारी बातें..
उस गाँव में अभी भी अंधी हैं रातें
"नहीं दो कुछ हमें नहीं चाहिए पैसा
लेकिन हमारे साथ यह बलात्कार कैसा..
हमने मान लिया है हमारा मुल्क गरीब है..
और सारी भूखी जनता मौत के करीब है.."
यह है एक जले हुए दुखी की पुकार
जो नहीं सह पाया मुआवजे का मार
अब तो इन बातों के बीते हो गए लाखों पल..
फिर भी मुआवजे की मांग पर सब रहे हैं चल..
न जाने यह मुआवजा अब लाएगा क्या..
गाँव की अस्थियों को गंगा तक पहुँचायेगा क्या ||
Dedicated to the sufferers Of manmade /natural Disasters..Who have suffered aftermath of COMPENSATIOn...Written with a Heavy Heart..hope it reaches where its destined..07/2007
I..
A Soul misplaced
The verses within
Lost in the vices
Despite being austere
Got stuck among choices.
I..
A Chord created
By melancholy of cacophony
unsung,mistuned
Orchestrated by noises
I..
A piece of Art
through canvas of filth
Untidy,Unedited
And Played By Life
As Casino's Dices.